Saturday, August 20, 2016

परमेश्वर एक है अनेक नहीं-पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य जी

परमेश्वर एक है अनेक नहीं


इस सृष्टि का स्रष्टा एक ही है | वही उत्पादन,अभिवर्धन तथा परिवर्तन कि सारी प्रक्रियाएँ अपनी योजनानुसार सम्पन्न करता है | न उसका कोई साझीदार और न सहायक |

सबका स्वार्थ संयुक्त है | एक कि सत्ता भिन्न-भिन्न प्रकार की हो गई और समझा जाने लगा जो जिस देवी-देवता कि पूजा पत्री करेगा वो उसी को अपना समझेगा और उसी की हिमायत करेगा | इतना ही नहीं जो अपने यजमान का उपेक्षा पात्र या विरोधी होगा उसे त्रास देने से भी न चूकेगा | यह मान्यता है आज कि बहुदेववाद की | इस प्रकार सृष्टा का ही खंड विभाजन नहीं हुआ वरन अपने अपने कुल वंश ग्राम नगर के भी पृथक पृथक देवी देवता बन गए और परमेश्वर का भी बँटवारा कर लिया गया | अनेको देवी देवता बन कर खड़े हो गए | उनकी आकृति ही नहीं प्रकृति भी अपने को न पूजने- दूसरे को पूजने पर वे देवता रुष्ट होने और त्रास देने पर उतारू होने लगे |

बहुदेववाद के आरंभिक दिनों में तीन हीं प्रमुख थे ब्रह्मा,विष्णु,महेश और उनकी पत्नियाँ सरस्वती,लक्ष्मी,काली | इसके बाद तो नित्य नए देवता उपजने लगे | देवताओं की संख्या अगणित हो गयी और देवियों की भी | उनकी चित्र-विचित्र फरमाइशें भी गढ़ी गई | इनमें से कुछ शाकाहारी थे कुछ मांसाहारी | कुछ क्रोधी कुछ शांत मिजाज़ | कुछ तो प्रेत पितर हीं देवी देवता बन बैठे | इनकी संख्या हजारों लाखों तक जा पहुंची | इस सन्दर्भ में पिछड़ी जातियों ने देव रचना का काम  बहुत उत्साह से बढ़ाया | शारीरिक मानसिक बीमारियों को उन्ही के रुष्ट होने का कारण माना जाने लगा | उपचार यही था कि किसी मध्यवर्ती ओझा के मार्फ़त समाधान करने के लिए उनकी रिश्वत का पता लगाना | इस समाधान में अक्सर खाने-पीने की वस्तुओं की याचना होती थी | विशेष कर पशु पक्षियों के बलिदान की | इनका कोई स्थान विशेष बना हो वहाँ पहुँचकर धोक देने की (प्रणाम करना ) |

घर में नई बहू आने या नया बच्चा पैदा होने पर कुल देवता कि दर्शन झांकी करने जाना भी आवश्यक समझा जाने लगा | इस प्रकार देवता का ‘मूड’ ठीक रखना भी हर परिवार के लिए आवश्यक जैसा बन गया | यह छोटी समझी जाने वाली बिरादरियों कि बात हुई | बड़ी बिरादरियों के देवता अपेक्षाकृत बड़ी शानदार ,ठाटबाट वाले बड़े देवी देवताओं के भक्त बनने में अपनी प्रतिष्ठा समझने लगे | उनकी पूजा पंडित पुरोहित द्वारा दुर्गा शप्तशती पाठ,शिव महिमा रुद्री आदि का पाठ, हवन पूजन जैसे उपचार और उनमें से अपने लिए जिन्हें चुना गया हो उनके दर्शन झाँकी करने का सिलसिला चलता | बहुदेववाद के पीछे अनेकानेक कथा कहानियाँ जोड़ी गई और उनकी प्रसन्नता से मिलने वाले लाभों का उनकी नाराज़गी से मिलने वाले त्रासों का माहात्म्य गाथाएँ गढ़ ली गईं | कितने ही देवताओं का किन्ही पर्व त्योहारों से सम्बन्ध जोड़ दिया गया | कईयों के स्थान विशेष पर जाना आवश्यक माना गया | इनमें से कुछ पुराने बने रहे और कितने ही नए बन कर खड़े हो गए | कई उपेक्षित होते चले गए और कई एकदम नए विनिर्मित होकर प्रख्यात हो गए |

तत्व-दर्शन और विवेक बुद्धि के आधार पर यह मानना पड़ता है कि परमेश्वर एक है | सम्प्रदायों की मान्यताओं के अनुसार उसके स्वरूप और विधान सही नहीं हो सकते | यह उनकी अपनी-अपनी ऐसी मान्यताएं हैं जो मानने वालों की निजी मान्यता पर अवलंबित है |

          व्यापक शक्ति को निराकार होना चाहिए | जिसका आकार होगा वह एक देशीय और सीमित रहेगा | कहा भी गया है “न तस्य प्रतिमा अस्ति” अर्थात “उसकी कोई प्रतिमा नहीं है” न स्वरूप न छवि | आप्त वचनों का एक और भी कथन ऐसा ही अभेद्य है | उसमें कहा गया है- “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति अर्थात एक ही परमेश्वर को विद्वानों ने बहुत प्रकार से कहा है | यहाँ पर सृष्टि व्यवस्था में साझीदारी करने वाले स्वतंत्र अस्तित्व के देवी-देवताओं से मुँह मोड़ लेना ही सत्य और तथ्य को अपनाने कि विवेकशीलता है |


                                                                                                 
           वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य जी (संस्थापक- गायत्री परिवार)
            ( स्त्रोत- अखण्ड ज्योति गायत्री परिवार मासिक पत्रिका, जून-1985)

                                                                                                                                

No comments:

Post a Comment